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यह दूध और खटाई की एकत्र स्थिति तुम्हीं कर सकते हो' हमारी कवि समाज के मुकुटमणि गोस्वामी तुलसी दास जी ने जनक महाराज की प्रशंसा में कहा है कि 'योग भोग महं राखेउ गोई । राम बिलोकत प्रगटेउ सोई ।' यदि गोस्वामी महाराजा को हम से दैहिक संबंध होता तो उन से एक ऐसी चौपाई अनुरोध पूर्वक बनवाते कि ' योग भोग दोऊ प्रगट दिखाई । सूचत अति अतर्क्य प्रभुताई ' हमारे कान्यकुब्ज भाई अधिक तर शैव ही हैं परदेश के दुर्भाग्य से ऐसी प्रतिमा देखके यह उपदेश नहीं सीखते कि ' जो हरि सोई राधिका को शिव सीई शक्ति । जो नारी सोइ पुरुष है थामे कक्त न विभक्ति ' नहीं तो शैवों का यह परम कर्तव्य है कि अपनी गृहदेवी से इतना स्नेह करें कि ' एक आन दो का़लिब ’ बनजाय ! और व्यभिचार के समय यह ध्यान रक्खें कि हमारे भोला बाबा ने जिस कामदेव को भस्म कर दिया है यदि हम उसी भस्मावशिष्ठ मन्मथ के हरायल बन जायगी तो हर भगवान को क्या मुंह दिखावेगे ! ! !

कोई २ प्रतिमा बृषभारूढ होती है पर वृषभका वर्णन हम ऊपर कर चुके हैं यहां केवल इतना और कहेगे कि नंदिकेश्वर ही की प्रीति के वश वे पशुपति अर्थात् पशुओ के पालनेवाले कहाते हैं अतः पशुओं का पालन विशेषतः वृषभ तथा उसकी अधगिनी का पोषण शैवो का परम धर्म हैं !