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वास्तविक शिवमूर्ति अर्थात् कल्याण का रूप है ! जब शिवमुर्ति समझ में आ जायगी तब यह भी जान जायगे कि उस की पूजा जो जिस रीति से करता है अच्छा ही करता है । पर तौ भी शिवपूजा की प्रचलित पद्धति का अभिप्राय सुन रखिए जिससे जान जाइए कि मूर्तिपूजन कोई पाप नहीं है ! शिवजी की पूजा में सब बातें तो वही हैं जो सब देवताओं की पूजा में होती हैं और सब प्रतिमापूजक समझ सकते हैं कि स्नान चंदन पुष्प धुप दीपादि मंदिर की शोभा और सुगंधि प्रसारण के द्वारा चित्त को प्रसन्नता के लिए हैं जिस में ध्यान करती बेला मन आनंदित रहे क्योंकि मैले कुचैले स्थान में कोई काम करो तो जी से नहीं होता ! नेवेद्यत्यादि इसलिए हैं कि हम अपने इष्ठ को खाते पीते सोते जागते सदा अपने साथ समझते हैं ! स्तुति प्रार्थनादि उन की महिमा और अपनी दीनता का स्मरण दिलाने की हैं पर शिवपूजा में इतनी बाते विशेष हैं एक तो मदार के फूल धतूरे के फल इत्यादि कई एक ऐसे पदार्थ चढ़ाए जाते हैं जो बहुधा किसी काम में नहीं आते इस से यह बात प्रदर्शित होती है कि जिस को कोई ने पूछे उसे विश्वनाथ ही स्वीकार करते हैं ! अथवा उन की पूजा के लिए ऐसी वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है जिन में धन की आवश्यकता हो क्योंकि वे निर्धनों का धन हैं उन्हें केवल गृहस्त्र में मिलनेवाली वस्तु भेंट कर दो वें बड़े प्रसन्न हो जायंगे क्योंकि अकृत्तिमता उन्हे प्रिय है ।