पृष्ठ:शैवसर्वस्व.pdf/९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
[ ६ ]


शिवजी से खाने को मांगा तो उन्होनें कहा कि यहाँ क्या रक्खा है अपने ही हाथ पांव खा डालो ! इस पर इन्होंने ऐसा ही किया ! तब से यह भोलानाथ को अत्यंत प्यारे हैं । इस कथा का मूलोदेश्य यह है कि प्रियतम की आज्ञा से यहां तक मुंह न मोड़ो तो निस्संदेह वुइ कल्याण मय तुम्हे अतिशय प्यार करेगा !!! कीर्तिमुख स्त्री के दर्शन वार के श्री १०८ नागरी दास जी के दूम प्रेममय वचन का स्मरण करो तो एक अनिर्वचनीय स्वादु पाओगे मानो स्वयं कीर्तिमुख ही आज्ञा कर रहे हैं कि “सोम काटि आगे धरौ तापर राखौ पांव । इश्क चमन के बीच में ऐसा हो तो आव ॥ १ ॥” और कुछ वन के मंदिकेश्वर जी के दर्शन होंगे, जिन्हें लड़के बूढ़े सभी जानते हैं कि महेश्वर जी के वाहन है मुख्य गण हैं, उन्हें बहुत प्रिय हैं वरंच वे वही हैं ! वह इस बात का रूपक है कि यदि हम परमेश्वर के अभिन्न मिथ डुबा चाहें तो हमें चाहिए कि अपने मनुष्यत्व का अभिमान यहां तक छोड़ दें कि मानो हम बैल हैं ! पर स्मरण रक्खो बैल उतना सज्ज नहीं है ! अपना पेट धाम हो भूसे से भरना पर लोकोपकारार्थ सदा सब रीति से प्रस्तुत रहना ! विशेषतः कृषिविद्या तो एक समय भारत संपत्ति का मूल थी, (उत्तम खेती मध्यम बाज) आज तक प्रसिद्ध है पर समय के फेर से इन दिनों लुप्त सी हो गई है उस के लिए जीवन भर बिला देना बैल ही का काम है ! या वों कड़ी शंकर स्वामी के परम सिद्ध को धर्म है ! कठिन परिश्रम कर के दूसरों के दिए अन्न