पृष्ठ:संकलन.djvu/१०५

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ठोकरें खा रहा है और कहीं का आगे बढ़ा हुआ है। अँगरेज़ी समाज में भी कम त्रुटियाँ नहीं हैं। वहाँ भी कुलीनता का थोड़ा- बहुत राग अवश्य अलापा जाता है। भारत के कुलीन ब्रह्मा जी के द्वारा गढ़े जाते हैं। परन्तु कुलीन अँगरेज़ संसार ही में निर्मित किये जाते हैं। निम्न श्रेणी में उत्पन्न हुए ग्रेट ब्रिटनवासी थोड़ा ही ऐश्वर्य पाने पर मध्यम श्रेणियों में और उच्च श्रेणीवाले उच्चतम श्रेणी में कूद जाने की अभिलाषा रखते हैं। उनके लिए और अनेक उपाय तो हैं ही, परन्तु एक उपाय यह भी है कि दो में से किसी एक राजनैतिक दल का पक्ष ग्रहण करके और उस के गुप्त कोश में गुप्त दान देकर कोई न कोई उपाधि प्राप्त कर लें। दान सीधे किसी के हाथ में नहीं दिया जाता -- कितने ही हाथों से होकर वह ठिकाने पहुँचता है। दान देने और लेनेवाले का कभी प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता। सारा काम एक मध्यस्थ कर देता है। जितना बड़ा दान होता है, उतना ही फल भी उससे प्राप्त होता है। पन्द्रह हज़ार पौंड देने से नाइट, तीस हजार देने से बेरोनेट और एक लाख देने से लार्ड की पदवी प्राप्त हो सकती है। जो व्यक्ति मध्यस्थ का काम करता है, उसे दलाली मिलती है। दान की रकम कई किस्तों में अदा की जा सकती है; परन्तु दान-दाता को यह बात किसी तरह मालूम नहीं होने पाती कि दान की रक़म किस तरह खर्च की जाती है। उपाधि पाने के पूर्व ही रक़म का बड़ा भाग दे देना पड़ता है; क्योंकि एक दो दफे ऐसा भी हुआ है कि लोगों ने

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