पृष्ठ:संकलन.djvu/१०६

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उपाधियाँ पाकर रकम देने से इनकार कर दिया। उपाधि-लोलुप लोग ऐसा भी करते हैं कि जब उन्हें एक दल उपाधि दिलाने में देर, या किसी कारण से टाल-टूल, करता है, तब वे दूसरे दल का आश्रय ग्रहण करते हैं।

गत दस वर्षों में ९६ नये लार्ड बनाये गये। इनमें से ४९ को उनकी जाति और देश-सेवा के लिए यह पदवी मिली; परन्तु, सुनते हैं, कि शेष ने रुपये दे कर ही इस गौरव-सूचक पदवी को ख़रीदा। किसी समय सर राबर्ट पील इँगलैंड के महा-मन्त्री थे। उनके शासन-काल के पाँच वर्षों में केवल पाँच आदमियों को लार्ड की पदवी मिली। परन्तु, इस समय, लार्ड की उपाधि का वितरण फ़ी महीने एक के हिसाब से हो रहा है। उसमें भी इन नये लाडौं में ऐसे ही लोगों की संख्या अधिक है जिन्होंने रुपये ही के बल से पदवी पाई है। जेम्स डगलस नाम के एक महाशय ने पियर्सन्स मैगेज़ीन में ऐसी ही बातें लिखी हैं।

उपाधि देते हैं सम्राट्, परन्तु दिलाते हैं महा-मन्त्री और मन्त्रि-मण्डल। इसमें सन्देह नहीं कि उपाधियों के क्रय-विक्रय की बात महा-मन्त्री को मालूम रहती है। लार्ड रोज़बरी इँग्लैंड के महा-मन्त्री थे। वे इस गुप्त क्रय-विक्रय से बड़े दुःखी रहते थे। यदि वे प्रयत्न करते तो कदाचित् इस प्रथा को बन्द भी करा देते; परन्तु यथार्थ में महा-मन्त्री लोग इस प्रथा के रोकने में असमर्थ से हैं। इस कुप्रथा का मिटाना स्वयं

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