पृष्ठ:संकलन.djvu/१११

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नीचे लटकी हुई रस्सियों में से एक एक को थाम लेता है। फिर सीटी बजती है। गोदाम के बड़े बड़े फाटक ज़ोर से खड़- खड़ाते हुए खुल पड़ते हैं और आगे का रास्ता बिलकुल साफ़ हो जाता है। तीसरी दफे सीटी होती है। व्योम-यान चलने लगता है। वह इतना धीरे धीरे सरकता है कि गोदाम की दीवारों की शहतीरों के देखे बिना यह नहीं मालूम होता कि वह चल रहा है या खड़ा है। रस्सियों को पकड़नेवाले आदमी ही अपना सारा बल लगा कर छः सौ मन भारी व्योमयान को आगे खींचते हैं। व्योमयान सीधा आगे बढ़ता है; वह इधर उधर गोदाम की दीवारों की ओर नहीं झुकता। उसके नीचे छोटे छोटे पहिये लगे रहते हैं जो पटरियों पर चलते हैं। गोदाम से लेकर उस स्थान तक, जहाँ से वह उड़ता है, पटरियाँ बिछी रहती हैं। पटरियों और पहियों के कारण वह सहज ही में घसीटा जाता है; इधर उधर झुकता नहीं।

अब व्योमयान गोदाम से बाहर उस स्थान में पहुँच जाता है जहाँ से उसे उड़ना है। उसके यन्त्र आदि फिर देखे जाते हैं। यन्त्र चलने पर घोर नाद आरम्भ होता है। लोग रस्सियों को छोड़ कर दूर हट जाते हैं। तब अन्तिम सीटी होती है। धीरे धीरे व्योमयान भूमि से उठता है। थोड़ी देर तक उसकी चाल बड़ी धीमी रहती है, परन्तु फिर, उसकी तेज़ गति को देख कर आश्चर्य होता है। साधारणतः वह ४० मील फी घण्टे के हिसाब से उड़ता है।

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