पृष्ठ:संकलन.djvu/११६

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१३५९ में, मुराद ( प्रथम ) तुर्कौं का राजा हुआ। उसने अपना हाथ योरप की ओर बढ़ाया। योरप के दक्षिण-पूर्व में बालकन नाम का एक प्रायद्वीप है। उस समय उस पर कान्सटेन्टीनोपिल के ईसाई सम्राट् का शासन था। मुराद ने बालकन के एक बड़े भाग को बलवत् अपने अधीन कर लिया। योरप की ईसाई शक्तियाँ मुसलमानों के इस दबदबे से बहुत घबराई। कई ईसाई राजों ने मिलकर मुराद पर आक्रमण कर दिया। १३८९ में घोर युद्ध हुआ और मुराद मारा गया। परन्तु विजयी मुसलमान ही रहे। इस विजय से सर्विया देश उनके हाथ लगा।

धीरे धीरे तुर्कौं ने ईसाई राजों से बलगेरिया भी छीन लिया। पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य काल में वे हंगरी राज्य की सीमा तक पहुँच गये। योरप में वे पहुँच तो दूर तक गये थे, ईसाई जातियों में उनकी धाक भी खूब बैठ गई थी, लोग उनके मुक़ाबले में आने से भी भय खाने लगे थे, परन्तु अभी तक वे वायजन्टाइन साम्राज्य की राजधानी, कान्सटेन्टीनोपिल नगरी को, जो उनके विजित देशों के एक कोने ही में पड़ती थी, न जीत सके थे। तुर्कों की यह परम अभिलाषा थी कि वे ईसाइयों के इस पुनीत नगर पर अपनी सत्ता जमावें। इस- लिए उन्होंने उसे कई बार घेरा भी, परन्तु वे सफल-मनोरथ न हुए। १४५१ में मुहम्मद द्वितीय तुर्कों का राजा हुआ। वह वीर और साहसी था। साथ ही उसका हृदय उच्चाकांक्षाओं

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