पृष्ठ:संकलन.djvu/११८

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प्रतापी बादशाह था। उसने तुर्की साम्राज्य को और भी प्रशस्त किया। वह फ़ारिस की बहुत सी भूमि दबा बैठा। सीरिया और मिस्र को भी उसने जीता। उसका पुत्र सुलेमान भी पिता के सदृश ही हुआ। उसने योरप के कुछ द्वीपों, तथा अफ़रीक़ा के अलजियर्स और ट्रिपोली को ले लिया। हंगरी के राजा तक उसे कर देने लगे। इस सुलतान के समय में तुर्क लोग उन्नति की चरम सीमा तक पहुँच गये। उसकी सेना प्रथम श्रेणी की समझी जाती थी। उनका जहाज़ी बेड़ा भी इतना बड़ा था कि समुद्री युद्ध में उस समय कोई भी उसकी बराबरी न कर सकता था। उनकी पहुँच भी दूर दूर तक थी। हंगरी और आस्ट्रिया तो उनका घर-द्वार था। जर्मनी के मैदानों तक वे धावे मारते थे।

सुलेमान के बाद उसका पुत्र सलीम द्वितीय सुलतान हुआ। वह अपने योग्य पिता का अयोग्य पुत्र निकला। उसी के समय से तुर्की साम्राज्य के पतन का आरम्भ हुआ। इसके बाद जो सुलतान हुए, उनमें से अधिकांश अयोग्य ही नहीं, किन्तु दुरा- चारी, दुर्व्यसनी, डरपोक और निर्बल थे। साम्राज्य में सुशा- सन न रहा। अत्याचार, लूट-मार और दुराचार की वृद्धि होने लगी। जो जिसके मन में आता था, सो करता था। सेना को वश में रखना मुश्किल था। कितने ही सुलतान तुर्की सेना के हाथों मारे गये। बगावतें शुरू हो गई। सुलतानों का नाकों दम आ गया। ईसाइयों पर अत्याचार होने लगे। टर्की की इस

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