पृष्ठ:संकलन.djvu/११९

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दुरवस्था के कारण उसके पड़ोसी राज्य, आस्ट्रिया और रूस, दिन पर दिन बलवान् होते जाते थे। अन्त में टर्की को निर्बल समझ कर, १७३९ में, रूस और आस्ट्रिया ने ईसाइयों की रक्षा के बहाने उससे युद्ध ठान दिया। यद्यपि टर्की का पतन हो रहा था, तथापि, अभी तक, वह इतना निर्बल न हो गया था कि उसे जो चाहता, हरा देता। आस्ट्रिया को हारना पड़ा। उसने और उसके मित्र रूस ने टर्की को कुछ ले-देकर अपना पीछा छुड़ाया। इस घटना से टर्की को सबक सीखना था। पर वह आँखें मूँदे अपनी पुरानी मस्त चाल से चलता रहा और कई बार ठोकरें खाने पर भी न चेता। इसका फल जो होना था, वही हुआ।

सेण्ट सोफ़िया नाम के गिरजाघर को तुर्कौं ने मसजिद बना डाला, यह ऊपर कहा जा चुका है। उसका तुर्की नाम है आयासोफ़िया; तथापि सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर भी ईसाई-संसार ने उससे ममता नहीं छोड़ी। क्रास के स्थान पर चन्द्र-चिह्न देख कर, कान्सटेन्टीनोपिल के ईसाई यात्री के हृदय में अब तब शूल उठता है। पश्चिमी योरप की ईसाई जातियों का विश्वास है कि एक दिन ऐसा अवश्य आवेगा, जब सेन्ट-सोफ़िया में इसलामी अज़ाँ के बदले पादड़ियों के घण्टों का नाद सुनाई पड़ेगा। ये जातियाँ चुप भी नहीं बैठीं। समय समय इन्होंने सेन्ट सोफिया पर अधिकार प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न भी किया। अठारहवीं शताब्दी के तृतीय और चतुर्थ चरण में रूस का शासन-सूत्र रानी कैथराइन के हाथ में

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