निर्जीव देख कर अज ने हृदय-विदारी विलाप करना आरम्भ
किया। इन्दुमती को अङ्क में लिये हुए इसी विलाप-विह्वल
अज का राजा रविवर्मा ने यह अद्भुत चित्र खींचा है।
इस कथा का आश्रय लेकर कालिदास ने रघुवंश के आठवें सर्ग में बड़ी ही मनोहारिणी कविता की है। उनके किये हुए अज-विलाप को सुन कर चित्त की अजब हालत हो जाती है। इस विलाप-वर्णन के कोई छब्बीस श्लोक हैं। उनमें से चुने चुने श्लोकों का भावार्थ हम नीचे देते हैं। महाकवि जी कहते हैं कि अत्यन्त साहजिक धीरता को भी छोड़ कर अज, गद्गद स्वर में, रोते हुए, विलपने लगे! तपाने से महा कठिन लोहा भी द्रवीभूत हो जाता है। फिर शोक से सन्तप्त हुए शरीर-धारियों का कलेजा पिघल उठेगा, इसमें कहना ही क्या है? अज का विलाप सुनिए --
"शरीर में छू जाने से महा कोमल फूल भी जब प्राण ले
लेते हैं, तब, काल के लिए, जीवों को मारने का सभी कुछ
साधन हो सकता है। वह चाहे तो तुच्छ से तुच्छ वस्तु से
भी प्राण-हरण कर सकता है। अथवा यो कहिए कि, कोमल
वस्तु को वह कोमल ही वस्तु से मारता है। देखो न, अति-
शय कोमल तुषार से कमलिनी नष्ट हो जाती है। मेरे ऊपर
पड़ी हुई विपत्ति से पहले ही यह उदाहरण हो चुका है। यदि
यह माला प्राणहारिणी है तो मुझे क्यों नहीं मार डालती?
मैं इसे हृदय पर रक्खे हूँ। ईश्वर की इच्छा से कभी कभी
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