पृष्ठ:संकलन.djvu/१२१

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अनुभव करते देख टर्की की गुलामी का तौक़ उतार फेंकने के लिए बेचैन होने लगी।

इस बीच में नेपोलियन ने मिस्र में फ्रान्स का झण्डा गाड़ दिया। परन्तु वह वहाँ अधिक दिनों तक न रह सका। इँग- लैंड नेपोलियन का परम शत्रु था। उसी की कृपा से बेचारा टर्की अपनी इस छीनी गई सम्पत्ति को फिर पा गया। ग्रीक लोग भी उधर स्वतन्त्र होने की फ़िक्र में थे। वे भी टर्की से लड़े-भिड़े। परन्तु अन्त में मुक़ाबिले में न ठहर सके। इधर रूस की सहायता से सर्विया-वाले उठ खड़े हुए। वे वर्षौ टर्की से लड़ते-भिड़ते रहे। अन्त में, १८१७ में, उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली। अब ग्रीक लोग चुप न बैठ सकें। वे फिर बिगड़े, पर बेतरह हारे। योरप के राज्यों ने बीच-बचाव कर देना चाहा; परन्तु टर्की ने उनकी एक न सुनी। इस पर, १८२७ में, इंग्लैण्ड, रूस और फ्रांस ने अपनी संयुक्त नाविक सेना लेकर टर्की पर चढ़ाई कर दी। फल यह हुआ कि टर्की हारा। ग्रीस स्वतन्त्र हो गया। रूस ने भी कुछ भूमि अपने राज्य में मिला ली। टर्की को इन झगड़ों से छुट्टी मिली तो मिस्त्र का मुहम्मद पाशा, सीरिया छीनने की नीयत से, उस पर आक्रमण कर बैठा। बड़ी मुश्किलों से, इँग्लैंड की कृपा से, उसे मुहम्मद के चंगुल से छुटकारा मिला।

१८५३ में रूस फिर टर्की से भिड़ पड़ा। इस युद्ध का कारण यह था कि अब रूस अपने को टर्की की सारी ईसाई

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