प्रजा का संरक्षक कहने लगा था। टर्की को यह बात अच्छी न
लगी। उसने इसका विरोध किया। बस, फिर क्या था; युद्ध
छिड़ गया। इस बार इँग्लैंड और फ्रांस ने टर्की की सहायता
की। अन्त में रूस को नीचा देखना पड़ा। उसे कुछ दबना भी
पड़ा। युद्ध के बाद टर्की ने घोषणा की कि अब से धर्म, भाषा
और जाति के लिहाज़ से किसी के साथ कुछ रिआयत न की
जायगी। योरप के राष्ट्रों ने भी वचन दिया कि उनमें से कोई
भी, अब, टर्की के घरेलू झगड़ों में हस्तक्षेप न करेगा। यह युद्ध,
इतिहास में, क्राइमियन युद्ध के नाम से विख्यात है।
टर्की ने करने को तो घोषणा कर दी, परन्तु उत्पात होते
ही रहे और ईसाई यह शिकायत, करते ही रहे कि हमें कष्ट
मिल रहा है। पर उन्हें सचमुच ही कष्ट मिलता था या नहीं,
यह भगवान ही जाने। अन्त में, १८७७ में, सर्विया और
मान्टोनिग्रो ने टर्की के विरुद्ध शस्त्र उठाया। रूस ने उनका
साथ दिया। पर किसी ने टर्की का पक्ष न लिया। अन्त में
टर्की को हार कर सन्धि करनी पड़ी। सर्विया, रुमानिया और
मान्टीनिग्रो पूर्णतया स्वतंत्र हो गये। बलगेरिया नाम का एक
बड़ा भारी ईसाई राज्य अलग बन गया। वह टर्की के अधीन
रक्खा गया। बोसनिया और हर्ज़ीगोविना नाम के दो तुर्की
प्रान्त आस्ट्रिया की देख-रेख में रहे; पर नाम मात्र के लिए।
राज-सत्ता उन पर टर्की ही की मानी गई। ग्रीस ने अपनी
सीमा बढ़ा ली। टर्की ने मैसीडोनिया प्रान्त में सुधार करने
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