पृष्ठ:संकलन.djvu/१२३

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का वचन दिया। टर्की साम्राज्य का योरपियन शरीर बिलकुल ही कट-छँट गया। इस कतरनी का, जिसने इतनी, काट-छाँट की, नाम है "बर्लिन की सन्धि"।

टर्की के भाग्य में इतनी ही दुर्गति न बदी थी। उसे अपने शरीर को और भी कटवाना पड़ा। १९०८ में, टर्की में एक नवीन भाव का सञ्चार हुआ। युवा तुकौं ने स्वेच्छाचारी सुल्तान अब्दुल हमीद को सिंहासन से उतार कर कैद कर लिया। उन्होंने एक पारलियामेंट बना ली। प्रजा की व्यवस्था के अनुसार काम करने की शपथ खानेवाले शाही ख़ानदान के एक आदमी को सुलतान का पद दिया। परन्तु उस क्रान्ति के समय टर्की को निर्बल देख कर आस्ट्रिया ने बोसनिया और हर्जीगोविना को हड़प लिया। उधर बलगेरिया भी स्वतन्त्र बन बैठा। अभी उस दिन इटली ने भी टर्की से ट्रिपोली छीन लिया। अब मिस्र में उसकी अंगुल भर भी ज़मीन न रह गई। यूरप में मैसीडोनिया और अलबानिया आदि दो एक सूबे जो टर्की के अधीन रह गये थे, वे भी अब गये ही समझिए । ईसाइयों की नज़रों में वे बेतरह खटक रहे थे। उन्हीं की प्राप्ति के लिए इस समय बालकन प्रायद्वीप में युद्धाग्नि प्रज्वलित है। ग्रीस, सर्विया, बलगेरिया और मांटिनिगरो मिल गये हैं। सब ने एक साथ टर्की पर चढ़ाई की है। भीतर ही भीतर योरप की और शक्तियाँ भी, अपना अपना आन्तरिक मतलब साधने के लिए, उन्हें पुचाड़ा दे रही हैं। ये लोग मन ही मन तुकौं से

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