पृष्ठ:संकलन.djvu/१२८

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संख्या बढ़ कर ६८ लाख के लगभग पहुंच गई। अर्थात् लड़कों की संख्या में कोई २६ फीसदी वृद्धि हुई। परन्तु भारत की आबादी के ख़याल से यह संख्या सिर्फ २७ फीसदी के बराबर है। अर्थात् १०० मनुष्यों में सिर्फ़ 2¾ मनुष्य शिक्षा पाते थे। इन १०० में 2¾ मनुष्यों की शिक्षा के लिए पहले तो बहुत ही कम खर्च होता था; परन्तु सन् १९१२ ईसवी में इस ख़र्च की मात्रा बढ़ कर ७ करोड़ ८६ लाख हो गई। ५ वर्ष पहले जहाँ ५ करोड़ ५६ लाख रुपया खर्च होता था, वहाँ २ करोड़ २७ लाख रुपया अधिक ख़र्च करना गवर्नमेंट के लिए प्रशंसा की बात अवश्य है। पर शिक्षा एक ऐसा विषय है जिसका महत्व और अनेक बातों से भी बढ़ कर है। और कामों में चाहे कम खर्च किया जाय, परन्तु शिक्षा में अधिक ख़र्च करना गवर्नमेंट का प्रधान कर्त्तव्य है। शिक्षा ही से मनुष्य को मनुष्यत्व प्राप्त होता है और शिक्षा न मिलने ही से पशुत्व। भारत की ३२ करोड़ आबादी से कर के रूप में गवर्नमेंट जो रुपया लेती है, उसका अधिकांश उसे प्रजा ही की भलाई के लिए ख़र्च करना चाहिए। और प्रजा की भलाई शिक्षा-प्राप्ति ही पर सब से अधिक अवलम्बित है। गवर्नमेंट इस बात को समझती है और इसी लिए वह शिक्षा के खर्च को बढ़ाती चली जाती है। पर यह बढ़ा हुआ ख़र्च भी आबादी के हिसाब से फी आदमी चार आना भी नहीं पड़ता। अतएव यह बहुत ही कम है। गवर्नमेंट शिक्षा के लिए जो कुछ कम ८ करोड़ रुपया ख़र्च करती है, वह सब

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