पृष्ठ:संकलन.djvu/१३०

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कह सकते, उनमें इन गुणों या अवगुणों की कहाँ तक हास- वृद्धि हुई है। पर मुसलमानों का लेखा शार्प साहब ने इस रिपोर्ट में अलग दे दिया है। इससे सूचित होता है कि हमारे मुसलमान भाई शिक्षा में खूब जल्दी जल्दी कदम बढ़ा रहे हैं । इस देश में कोई ६ करोड़ मुसलमान रहते हैं। अर्थात् कुल आबादी के लिहाज़ से उनकी संख्या फ़ी सदी २२ है। इन ६ करोड़ में से-१९०७ में ११,७२,३७१, १९१२ में १५,५१,१५१ लड़के, मुसलमानों के, शिक्षा पाते थे। यह वृद्धि फ़ी सदी ३२ के हिसाब से पड़ी । शिक्षा पानेवाले समग्र भारतवासी लड़कों की संख्या में तो फ़ी सदी २६ ही की वृद्धि हुई; पर मुसस्मानों के लड़को की संख्या उससे फी सदी ६ अधिक बढ़ गई। इस से प्रकट है कि मुसल्मान बड़े धड़ाके से अपने लड़कों को शिक्षित कर रहे हैं और दिन पर दिन उनकी संख्या बढ़ाते जा रहे हैं। शार्प साहब के कथन से यह भी मालूम हुआ कि कहीं कहीं मुसल्मान लड़कों का औसत हिन्दू लड़कों के औसत से बढ़ गया है। उदाहरण के लिए, कुलीनता का दम भरने-वाले ब्राह्मणों के प्रान्त संयुक्त-प्रान्त में यदि सौ में ९ लड़के हिन्दुओं के स्कूल जाते हैं, तो मुसलमानों के १३ जाते हैं। शिक्षा-वृद्धि के कारण ही लिखे-पढ़े मुसलमानों की संख्या भी हर साल बढ़ती चली जा रही है। इस वृद्धि पर शार्प साहब बहुत खुश हैं । होना ही चाहिए। परन्तु यह बात समझ में न आई कि फिर, मुसलमान शिक्षा में अब तक पिछड़े हुए क्यों माने जाते हैं।

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