पृष्ठ:संकलन.djvu/१३१

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हिन्दुओं से भी जब वे शिक्षा में कहीं कहीं बढ़ गये हैं, तब उनकी शिक्षा के लिए विशेष प्रबन्ध की जरूरत क्यों ?

प्रारम्भिक मदरसों की अपेक्षा मुसल्मान लड़कों की संख्या कालेजों में फ़ी सदी अधिक है; और अरबी, फारसी, उर्दू के मकतबी और खास तरह के मदरसों में तो यह संख्या और भी बढ़ी हुई है। बात यह है कि अपने लड़कों को क़ुरान पढ़ाना और अरबी फ़ारसी के मौलवी बनाना मुसल्मान सबसे अधिक ज़रूरी समझते हैं। शार्प साहब की राय है कि हिन्दुस्तान के मुसल्मानों की भाषा उर्दू है। पर इसका यह मतलब नहीं कि सभी कहीं वे यह भाषा बोलते हैं अथवा इससे परिचय रखते हैं।

"Urdu is the recognized Lingua Franca of the Muhammadans of India. But it does not follow that it is every where the vernacular commonly used by them, or even that they have any acquaintance with it."

अच्छी बात है। मुसल्मानों की सार्वदेशिक भाषा उर्दू सही। पर सौ में बाईस आदमियों की भाषा उर्दू होने से भी तो वह सारे देश की भाषा नहीं हो सकती। फिर यहाँ तो बात ही और है। शार्प साहब के कथनानुसार भी सभी कहीं के मुसल्मान उर्दू नहीं जानते। इस दशा में, सौ में दस ही पाँच आदमी जिस भाषा को जानते हैं और जिसमें लिखी गई किताबें छापने के लिए टाइप तक दुर्लभ हों, उसी को सर्व-गुण-संपन्न व्यापक भाषा बतानेवालों की जितनी प्रशंसा की जाय, कम है।

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