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स्त्री-शिक्षा

स्त्री-शिक्षा वृद्धि पर है। किसी किसी प्रान्त में पाँच वर्ष पहले की अपेक्षा अब दूनी लड़कियाँ मदरसों में शिक्षा पा रही हैं। यद्यपि इनका अधिकांश प्रारम्भिक पाठशालाओं ही में है, तथापि कुछ लड़कियाँ ऊँचे दरजे के मदरसों में भी पहुँच रही हैं। साल में दस पाँच कालेजों में भी दाख़िल हो जाती हैं। पर बेचारे संयुक्त प्रांत की स्त्री-शिक्षा की अवस्था बहुत ही शोचनीय है। इस विषय में मध्य प्रदेश और बरार तक उससे बढ़ा हुआ है। १९०७ में, कुल भारतवर्ष में, साढ़े छ: लाख लड़कियाँ शिक्षा पा रही थीं। १९१२ में यह संख्या बढ़ कर साढ़े नौ लाख हो गई। अर्थात् फी सदी ४७ की वृद्धि हुई। अन्य अनेक प्रान्तों में इस वृद्धि की इयत्ता ३७ से लेकर ९३ फी सदी तक है। पर निरक्षरता के नीर-निधि में निमग्न संयुक्त प्रान्त में वह ३५ से अधिक नहीं। हमारे इस अभागी प्रान्त में मदरसे जाने योग्य १०० लड़कियों में एक ही लड़की पढ़ने जाती है। एक तो यहाँ लड़कियों के मदरसे ही बहुत कम हैं; दूसरे जहाँ हैं भी, वहाँ परदा मारे डालता है; तीसरे देहात में लड़कियों को शिक्षा देना अनावश्यक समझा जाता है।

अब ज़रा देखिए, भिन्न भिन्न जातियों और धर्मानुयायियों में शिक्षा पानेवाली लड़कियों की संख्या कितनी है—

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