पृष्ठ:संकलन.djvu/१४

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केवल तुझ में अनुराग रखनेवाला मैं -- ये सब सुख के सामान रहते भी तेरा, इस प्रकार, हम सब को छोड़ जाना निश्चय ही बड़ा निष्ठुर काम है। मेरा धीरज अस्त हो गया; विलास का भी नाश हो गया; गाना बजाना भी हो चुका; वसन्तादिक उत्सव भी समाप्त हुए; आभूषणों का प्रयोजन भी जाता रहा; शय्या भी सूनी हो गई। तू मेरी गृहिणी थी; तू मेरी मन्त्री थी; तू मेरी एकान्त की सखी थी; तू ललित कलाओं में मेरी प्यारी शिष्या थी। ऐसी तुझको इस निष्करुण मृत्यु ने हरण कर के मेरा क्या नहीं हरण किया?"

इस कविता का आनन्द अनुवाद में नहीं मिल सकता; फिर गद्य में तो और भी नहीं। उसके लिए मूल श्लोक ही पढ़ने चाहिएँ।

[नवंबर १९०३.