पृष्ठ:संकलन.djvu/१४९

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अँगरेज़ों का अधिकार पहले-पहल केप कालनी पर हुआ, फिर नटाल पर।

ट्रान्सवाल और आरेंज-फ्री-स्टेट में यूरप के कई देशों के बहुत से लोग बस गये थे। उनमें डच और फ्रेञ्च मुख्य थे। उन लोगों को भी मज़दूरों की ज़रूरत थी। केप कालनी में अङ्गरेज़ों का एक गवर्नर रहता था। सर जार्ज ग्रे जिस समय वहाँ के गवर्नर थे, उस समय केप कालनी में रहनेवाले अगरेज़ों की प्रार्थना पर सर जार्ज ने इंगलैंड को लिखा कि भारत से कुछ मज़दूर वहाँ भेज दिये जायँ तो अच्छा हो। इंगलैंड ने भारत को यही बात लिखी। इस पर भारत के बड़े लाट ने हिन्दुस्तानी मज़दूरों के सुभीते के लिए बहुत सी शर्तैं कीं। उनको केप कालनीवालों ने मञ्जूर कर लिया। इन्हीं शर्तौं के अनुसार अफ़रीक़ा जाकर भारत के मज़दूर मज़दूरी करने लगे। पहले तीन, फिर पाँच वर्ष में उनकी शर्तैं पूरी हो जाती थीं। तब वे स्वतन्त्र हो जाते थे। स्वतन्त्र होकर वे वहाँ बस जाते और वाणिज्य-व्यवसाय आदि करने लगते थे। उनके बसने के लिए वहाँ की सरकार उन्हें ज़मीन भी मुफ्त ही दिया करती थी। और भी अनेक सुभीते उन्हें थे। असल में वहाँ की सरकार का अभिप्राय यह था कि इन मज़दूरों के वहाँ बस जाने से अफ़रीक़ा आबाद भी हो जायगा और वहाँ के व्यवसायियों के लिए परिश्रमी और सीधे-सादे मज़दूर भी मिलने लगेगे। इसी से सैकड़ों लोग केप कालनी में बस गये । नटाल,

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