पृष्ठ:संकलन.djvu/१५४

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सार हिन्दुस्तानी स्त्री-पुरुषों और बच्चों तक को फिर से नाम रजिष्टर कराने की आज्ञा हुई।

हिन्दुस्तानियों ने इस विपत्ति से बचने की पूरी चेष्टा की। उनकी प्रार्थना पर केवल स्त्रियाँ उक्त क़ानून के पंजे से मुक्त हो सकीं; और कुछ न हुआ।

तब जोन्सवर्ग में हिन्दुस्तानियों ने एक बड़ी भारी सभा की। उसमें सभी ने मिलकर यह प्रतिज्ञा की कि जब तक ऐसे दुःखदायी क़ानून रह न किये जायँ, तब तक उन्हें कोई न माने। बस, इसी समय से हिन्दुस्तानियों के निष्क्रिय-प्रतिरोध ( Passive Resistance ) का आरम्भ हुआ। उनके कई प्रतिनिधि इँगलैंड भी पहुँचे। वहाँ उस क़ानून पर विचार करने के लिए एक कमिटी बनी। कमिटी के उद्योग से इस क़ानून का जारी होना थोड़े दिनों तक के लिए मुलतवी रहा। इस बीच में हिन्दुस्तानियों के मुखिया लोगों ने गवर्नमेंट से यह कहा कि हम खुशी से अपने नाम रजिस्टर करा देंगे, आप इस क़ानून को जारी न कीजिए; पर कुछ फल न हुआ। क़ानून का मसविदा ट्रांसवाल की पार्लियामेंट में पेश हुआ और पास भी हो गया। १९०७ ईसवी में जब से यह कानून जारी हुआ, तभी से हिन्दुस्तानियों ने अपनी पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार निष्क्रिय-प्रतिरोध का प्रारम्भ किया। इस कारण सैंकड़ों को नहीं हज़ारों को जेल जाना पड़ा। पर वे ल़ोग अपनी प्रतिज्ञा से विचलित न हुए।

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