च्यमलफू से सियूल कुल २४ मील है। यह रेल जापानियों के प्रबन्ध से बनी है; वही उसके कर्ताधर्ता हैं। कोरिया में कोरिया ही की भाषा बोली जाती है; परन्तु उस पर वहाँवालों की प्रीति कम है। पढ़े लिखे आदमी बहुधा चीनी भाषा बोलते हैं। राजकार्य भी उसी भाषा में होता है। अच्छे अच्छे ग्रन्थ भी उसी भाषा में बनते हैं। राज्य प्रणाली सब चीन से नक़ल की गई है। चीन की तरह कोरिया में भी "मन्दारिन" हैं। परीक्षायें भी वैसी ही होती हैं; और, कोई भी कोरियावासी उनमें शामिल हो सकता है। पास हो जाने पर, और बातों का कुछ भी ख़याल न करके, उम्मेदवार को, उसकी योग्यता के अनु- सार जगह मिलती है। कोरियावाले पहले बौद्ध थे; अब भी कहीं कहीं इस धर्म का प्रचार वहाँ है, परन्तु चीन के "कन- फ्यूशश" नामक धर्म की वहाँ विशेष प्रबलता है। कोरिया- नरेश इसी धर्म के अनुयायी हैं। कोरिया में स्त्रियों का बहुत कम आदर होता है; परन्तु स्वतंत्रता उनको खूब है। बड़े बड़े घरों की स्त्रियों को छोड़कर और कहीं वे परदे में नहीं रक्खी जातीं।
पुराने ज़माने में जापान ने कोरिया को कई बार हराया
है। १७९० ईसवी तक कोरिया-नरेश जापान की रक्षा में समझे
जाते रहे हैं। परन्तु उसके बाद कोरिया ने चीन का आधिपत्य
स्वीकार कर लिया। कोरिया को यद्यपि सब तरह की स्वतंत्रता
थी, परन्तु चीन-राज को उसे अपना राजेश्वर समझना पड़ता
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