पृष्ठ:संकलन.djvu/१७४

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बहुत से रोगों की उत्पत्ति छोटे छोटे अदृश्य कीटाणुओं से होती है। ये कीटाणु जीव-जन्तुओं के द्वारा एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं। और, मक्खियों की यह आदत है कि वे भली-बुरी सभी जगह जाती हैं और रोगी तथा नीरोग सब तरह के आदमियों पर बैठती हैं। इससे यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि मक्खियों के द्वारा रोग उत्पन्न करनेवाले कीटाणुओं के प्रसार में बहुत सहायता मिलती है।

इस अनुमान की सहायता की परीक्षा भी की गई है। परीक्षा से ऐसा भयङ्कर परिणाम देखने में आया है कि कॉब साहब ने उसे प्रकाशित करने का भी साहस नहीं किया। वे कहते हैं कि अपनी परीक्षा का ऐसा भयङ्कर फल देख कर मुझे खुद ही सन्देह होता है कि जाँच करने में किसी तरह की ग़लती ज़रूर हुई होगी। इसी से मैं उसे अभी प्रकट नहीं करना चाहता।

मक्खियों की बनावट विलक्षण होती है। उनके प्रत्येक पैर में दो दो पञ्जे और हलके रङ्ग की दो दो गद्दियाँ होती हैं। खुर- खुरी चीज़ों पर मक्खियाँ पञ्जे के बल बैठती हैं और चिकनी चीज़ों पर पञ्जे और गद्दियाँ दोनों के बल। इन गद्दियों पर हज़ारों छोटे छोटे बाल होते हैं। बालों के सिरे चिपचिपे होते हैं। जब मक्खी किसी रोगी के शरीर पर बैठती है, तब रोग के कीटाणु इन्हीं बालों के सिरे में चिपक जाते हैं। फिर दूसरी जगह

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