पृष्ठ:संकलन.djvu/१९

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१८६४ में आप राजा हुए, और १८९७ में, आपने राजराजेश्वर की पदवी धारण की। आपका वंश कोरिया में १३९२ ईसवी से चला आता है। आप अपने वंश के तेरहवें नृपराज है। आपके अधीन एक मन्त्रिमण्डल है। वही क़ायदे-कानून बनाता है। वही सब विषयों का विधि-निषेध करता है। उसके मन्तव्यों का विचार राजेश्वर करते हैं और विचार करके उनको मञ्जूर करते हैं। १८९४ तक ह्वनी ई का राजत्व, चीन की रक्षा में, अखण्डित बना रहा। परन्तु इस वर्ष जापान ने कोरिया के ऊपर चीन का स्वत्व स्वीकार न किया। चीन और जापान के युद्ध का यह भी एक कारण हुआ। इस युद्ध में जापान विजयी हुआ। चीन के साथ उसकी सन्धि हुई। सन्धि में चीन ने कोरिया पर अपने प्रभुत्व का दावा छोड़ा। तव से कोरिया ने जापान की रक्षा में रहना क़बूल किया। जापान की सहायता से, कोरिया में, इन सात आठ वर्षों में बहुत कुछ सुधार हुआ है।

चीन से सन्धि-पत्र पर दस्तख़त कराके जापान जब निश्चिन्त हुआ, तब उसने कोरिया-नरेश से कहा कि सर्वसाधारण के सामने और पितरों के पवित्र मन्दिर में, वे चीन की प्रभुता परित्याग करने की शपथ करें। कोरिया-नरेश बड़े संकट में पड़े। परन्तु कर क्या सकते थे? जापान का बल, जापान का रण-कौशल वे देख चुके थे। इसलिए उसका आदेश उन्हें मानना ही पड़ा। १८९५ के जनवरी की ८ तारीख़ इस शपथ

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