पृष्ठ:संकलन.djvu/२०

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के लिए नियत हुई। नरराज के महलों से लेकर पितृ-मन्दिर तक कोरिया के अश्वारोही सड़क पर दोनों ओर खड़े हुए। किस तरह? अपना और घोड़े का मुँह दीवारों की तरफ; अपनी पीठ और घोड़े की दुम नरेश की तरफ सड़क की ओर! कुछ देर में राजप्रासाद से अनेक पताकाधारी निकले और मन्दिर को चले गये। उनके पीछे कोरिया नरेश का सेवक-समूह, पीली पोशाक और पीली टोपी पहने बाहर आया। अनन्तर नरेश का रेशमी लाल रङ्गवाला छाता देख पड़ा। उसके बाद चार आद- मियों के कन्धे पर रक्खी हुई एक कुरसी में कोरिया-नरेश पधारे। आप, सदा अपनी प्रसिद्ध राजसी कुरसी पर, १६ आदमियों के कन्धों के ऊपर, निकला करते हैं; परन्तु इस अवसर पर आप उस ठाठ से नहीं निकले। आपका चेहरा ज़र्द था; मुँह से नाउम्मेदी टपक रही थी। उनके पीछे युवराज, फिर मन्दारिन, फिर सेना विभाग के अधिकारी, और अन्त में दूसरे लोग अपने अपने घोड़ो और ख़च्चरों पर बाहर निकले। इस प्रकार नरेश ने देव-मन्दिर में जाकर चीन का सम्बन्ध त्याग करने की, जापान की प्रभुता स्वीकार करने की, और जापान की आज्ञा को सिर पर रख कर तदनुकूल कोरिया में सब प्रकार के संशोधन करने की क़सम खाई। इस प्रकार चीन- जापान के युद्ध रूपी नाटक का यह आखिरी खेल ख़तम हुआ।

श्रीमती बिशप नाम की एक अँगरेज़ विदुषी ने "कोरिया और उसके पड़ोसी" (Korea and its Neighbours)

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