पृष्ठ:संकलन.djvu/२१

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नामक एक पुस्तक लिखी है। उसमें उन्होंने कोरिया का अच्छा हाल लिखा है। वे कहती हैं कि कोरिया की महारानी की उम्र इस समय कोई ४२ वर्ष की होगी। वे बहुत दुबली पतली हैं, परन्तु देखने में बुरी नहीं मालूम होतीं। उनके केश सिवार के समान हैं; कुछ काले हैं, कुछ भूरे। उनका रंग पीलापन लिये हुए है, मुँह पर वे मुक्ता-चूर्ण मलती हैं, जिससे उनके मुख पर एक प्रकार का लावण्य आ जाता है। उनको देखने से मालूम होता है कि वे समझदार हैं। जब वे बात-चीत करती हैं, और वह बात चीत उनको अच्छी लगती है, तब उनके चेहरे पर ऐसा रंग आ जाता है, जिसे सुन्दरता में दाख़िल कर सकते हैं।

कोरिया-नरेश को जापान ने सभ्यता सिखलाना शुरू कर दिया है। दो वर्ष हुए, आपने कोरिया में खनिज विद्या का एक कालेज बनवाने का विचार किया था। इसके प्रवन्धकर्ता कोरियावाले ही होनेवाले थे, परन्तु अध्यापक और इञ्जिनियर फ्रांस से बुलाने का इरादा था। नहीं मालूम यह कालेज बन गया या नहीं।

महारानी विक्टोरिया को एक बार कोरिया-राज ने एक सम्मान-सूचक ख़िताब, पदक समेत, भेजा। महारानी ने भी कोरिया के राजेश्वर को सम्मान देना चाहा। इसलिए उन्होंने जी० सी० आई० ई० नामक इस देश से सम्बन्ध रखनेवाली और विशेष आदर-सूचक पदवी उनको प्रदान की। इस पदवी-दान के समय "स्टैन्डर्ड" नामक समाचार-पत्र का

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