पृष्ठ:संकलन.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


प्रतिनिधि कोरिया में उपस्थित था। अँगरेजी "कानसल" पदवी सम्बन्धी पदक लेकर राज-प्रासाद में पहुँचा। उसने पहले राजेश्वर को बा-क़ायदा प्रणाम किया। फिर उसने अपने साथियों में से एक एक की पहचान कराई। राजेश्वर ने प्रत्येक की ओर सिर झुका कर उनके नामों को दुहराया। तदन्तर वार्तालाप आरम्भ हुआ। जहाँ पर यह उत्सव था, वहीं पास के एक कमरे में, कोरिया की महारानी और उनकी सहेलियाँ भी थीं। जो परदा पड़ा था, वह इतना पतला था कि उसके भीतर से उनके वस्त्राभूषण बख़ूबी देख पड़ते थे। इस उत्सव के लिए जो तैयारियाँ की गई थीं, उन्हें देख कर कोरिया नरेश ने प्रसन्नता प्रकट की। जब आपको पदवी-दान हुआ और आप तत्सम्बन्धी पदक आदि से सज्जित और सुशोभित किये गये, तब आपकी प्रसन्नता और तुष्टि का वारापार न रहा।

इस समय यही कोरिया-नरेश दो नृपति-सिंहों के पेच में पड़े हुए हैं। यद्यपि उनसे, इन दोनों में से कोई भी शत्रु भाव नहीं रखता, तथापि यह रणाग्नि, जो इस समय सुलग रही है, उन्हीं के देश को ग्रास करने के लिए है। इस सिंह-युग्म की चपेट में उनका भी कुछ अनिष्ट हो जाय तो आश्चर्य नहीं; क्योंकि उनकी प्रजा और सेना ने, सुनते हैं, बलवा शुरू कर दिया है और विदेशियों की मार काट के लिए हथियार उठाया है।

[मार्च १९०४.
 

१४