पृष्ठ:संकलन.djvu/२५

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वे सी० एस० आई० हुए और १९०२ में के० सी० एस० आई०। चीफ़-कमिश्नरी से उन्होंने पेन्शन ले ली। काटन साहब की इस देश और इस देश के रहनेवालों पर बड़ी प्रीति है। आपने "न्यू इंडिया" नाम की एक किताब लिखी है। उसमें इस देश की वर्तमान दशा का बहुत ही अच्छा वर्णन है। उसे हिन्दु- स्तानी मात्र को पढ़ना चाहिए। आसाम में चाय के अनेक बाग़ हैं। उनमें जो कुली काम करते हैं, उन पर साहब लोग अक्सर बड़ी सख्ती करते हैं। यह बात काटन साहब से, चीफ़ कमिश्नरी की हालत में, देखी नहीं गई। उन्होंने कुलियों का खूब पक्ष लिया। इस पर उनसे उनके देशवासी सख्त नाराज़ हुए। पर उन्होंने इसकी ज़रा भी परवा नहीं की। खुले मैदान, कौंसिल में, उन्होंनें कुलियों की दशा का, उन पर होनेवाले अत्याचारों का और अपने सहानुभूतिसूचक विचारों का बड़े आवेश में आकर वर्णन किया। काटन साहब अच्छे समाज-संशोधक हैं और कांग्रेस के पक्षपाती हैं। जब तक वे इस देश में रहे, छोटे से लेकर बड़े तक, सबसे वे मिलते रहे। कभी किसी से मिलने से उन्होंने इनकार नहीं किया। एक दफे अपने मुँह से उन्होंने कहा --

"The excuse of फुरसत नहीं is abhorent to me" -- अर्थात् -- "फुरसत न होने का बहाना बतलाने से मुझे नफरत है।" ऐसे महामना और उदारचेता काटन साहब इस कांग्रेस के सभापति वरण किये गये हैं।

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