पृष्ठ:संकलन.djvu/२८

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आकर, उन्होंने अपनी भूल स्वीकार कर ली, जिससे गवर्नमेंट का क्षोभ उन पर से जाता रहा। वे पूना के स्वदेशी फ़रगुसन कालेज में प्रोफेसर हैं। बहुत कम वेतन लेकर वे वहाँ विद्या- दान देते हैं। देश-सेवा ही में उन्होंने अपना समय व्यतीत करने का प्रण कर लिया है। अपने प्रान्त से वे वाइसराय के कौंसल के मेम्बर हैं। वे अपूर्व वक्ता हैं। "यूनीवरसिटी बिल" पास होने के समय उन्होंने कौंसल में जैसी आवेशपूर्ण वक्तृता दी थी, वैसी आज तक किसी हिन्दुस्तानी से नहीं बन पड़ी। उससे कौंसल का "हाल" कँप उठा था; बिल को उपस्थित करनेवालों का चेहरा सुर्ख़ हो गया था; और लार्ड कर्जन तक से उसका यथोचित उत्तर न बन पड़ा था। उनकी वह वक्तृता एक अजूबा चीज़ है। वह सादर पढ़ने लायक है और चिरकाल तक रख भी छोड़ने लायक है। उसके कुछ ही दिन बाद गवर्न- मेंट ने उनको सी० आई० ई० कर दिया। बहुत अच्छा हुआ।

मिस्टर दिनशा एदलजी वाचा बम्बई के निवासी हैं। आप पारसी-वंशज हैं। कांग्रेस से आपका उसी तरह का सम्बन्ध है, जिस तरह का योगियों का ब्रह्मानन्द से होता है। शायद ही कोई कांग्रेस ऐसी हुई हो जिसमें आप उपस्थित न रहे हों। व्यापार-विषयक बातों में आपका तजरुबा बहुत बढ़ा चढ़ा है। आपके बोलने का ढंग ऐसा है कि सुननेवालों के नेत्र आपके चेहरे पर जाकर चिपक से जाते हैं। वक्तृता में, यथा समय, अङ्ग-विक्षेप करने की कला आपको खूब आती है।

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