सीखी। आठ वर्ष की उम्र में उसने उस भाषा का थोड़ा सा
अभ्यास भी कर लिया। बहुत से गद्य ग्रंथ उसने पढ़ डाले।
आठवें वर्ष मिल ने लैटिन सीखना शुरू किया। कुछ दिन बाद
अंक-गणित, बीज-गणित और रेखा-गणित भी वह सीखने लगा।
बारह वर्ष की उम्र में मिल को ग्रीक और लैटिन का अच्छा
ज्ञान हो गया। वह प्लेटो और अरिस्टाटल के गहन ग्रंथ अच्छी
तरह समझने लगा। दिल बहलाने के लिए वह इतिहास और
काव्य भी पढ़ता था और कभी कभी कविता भी लिखता था।
पोप का किया हुआ इलियड का भाषांतर उसे बहुत पसंद
आया। उसे देखकर वह छोटी छोटी कवितायें लिखने लगा।
इससे मिल को शब्दों का यथा-स्थान रखना आ गया। पद्य-
रचना के विषय में मिल के पिता ने पुत्र की प्रतिकूलता नहीं
की। यह काम उसकी अनुमति से मिल ने किया।
मिल को अपनी हमजोली के लड़कों के साथ खेलने-कूदने
को कभी नहीं मिला। उसने अपना आत्म-चरित अपने हाथ से
लिखा है। उसमें एक जगह वह लिखता है कि उसने एक दिन
भी 'क्रिकेट' नहीं खेला। लड़कपन में यद्यपि वह बहुत मोटा-
ताज़ा और पलवान नहीं था, तथापि वह इतना दुबला और
अशक्त भी नहीं था कि उसके लिखने-पढ़ने में बाधा आती।
जब वह तेरह वर्ष का हुआ, तब उसके बाप ने उसे विशेष
गंभीर विषयों की शिक्षा देना आरंभ किया। ग्रीक, लैटिन और
अँगरेज़ी भाषा में उसने तत्व-विद्या और तर्क-शास्त्र की अनेक
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