पृष्ठ:संकलन.djvu/३६

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पुस्तकें पढ़ डालीं। उसका बाप रोज़ बाहर घूमने जाया करता था। अपने साथ वह मिल को भी रखता था। राह में वह उससे प्रश्न करता जाता था। जो कुछ वह पढ़ता था, उसमें वह उसकी रोज परीक्षा लेता था। जो चीज़ बाप पढ़ाता था, उसका उपयोग भी वह पुत्र को बतला देता था। उसका यह मत था कि जिस चीज़ का उपयोग मालूम नहीं, उसका पढ़ना व्यर्थ है। तर्क-शास्त्र अर्थात् न्याय, और तत्व-विद्या अर्थात् दर्शन- शास्त्र में मिल थोड़े ही दिनों में प्रवीण हो गया। किसी ग्रंथ- कार के मत या प्रमाण को कबूल करने के पहले उसकी जाँच करना मिल को बहुत अच्छी तरह आ गया। दूसरों की प्रमाण-श्रृंखला में वह बड़ी योग्यता से दोष ढूँढ निकालने लगा। यह बात सिर्फ अच्छे नैयायिक और दार्शनिक पंडितों ही में पाई जाती है; क्योंकि प्रतिपक्षी की इमारत को अपनी प्रबल दलीलों से ढहाकर उस पर अपनी नई ईमारत खड़ा करना सब का काम नहीं। खंडन-मंडन की यह विलक्षण रीति मिल को लड़कपन ही में सिद्ध हो गई। इसका फल भी बहुत अच्छा हुआ। यदि थोड़ी ही उम्र में उसकी तर्क-शक्ति इतनी प्रबल न हो जाती तो वह वयस्क होने पर इतने अच्छे ग्रंथ न लिख सकता। मिल के घर उसके पिता से मिलने अनेक विद्वान् आया करते थे। उनमें परस्पर अनेक विषयों पर वाद-विवाद हुआ करता था। उनके कोटि-क्रम को मिल ध्यानपूर्वक सुनता था। इससे भी उसको बहुत फायदा हुआ। उसकी बुद्धि बहुत जल्द

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