पृष्ठ:संकलन.djvu/३८

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उनके लेख अच्छे नहीं होते, क्योंकि वे जल्दी में लिख जाते हैं। पर जो लोग जीविका का कोई और द्वार निकाल कर पुस्तक- रचना करते हैं, वे सावकाश और विचार-पूर्वक लिखते हैं। इससे उनकी विचार-परम्परा अधिक मनोग्राह्य होती है और उनके ग्रन्थों का अधिक आदर भी होता है।

१८६५ से १८६८ तक मिल पारलियामेंट का मेम्बर भी रहा। वह यद्यपि अच्छा वक्ता न था, तथापि जिस विषय पर वह बोलता था, सप्रमाण बोलता था। उसकी दलीलें बहुत मज़बूत होती थीं। ग्लैडस्टन साहब ने उसकी बहुत प्रशंसा की है। एक ही बार मिल का प्रवेश पारलियामेंट में हुआ। कई कारणों से लोगों ने उसे दुवारा नहीं चुना। उन कारणों में सबसे प्रबल कारण यह था कि पारलियामेंट में हिन्दुस्तान के हितचिन्तक ब्राडला साहब के प्रवेश-सम्बन्धी चुनाव में मिल ने उनकी मदद की थी। ऐसे घोर नास्तिक की मदद! यह बात लोगों को बरदाश्त न हुई। इसी से उन्होंने दुबारा मिल को पारलियामेंट में नहीं भेजा। यह सुनकर कई जगह से मिल को निमन्त्रण आया कि तुम हमारी तरफ से पारलियामेंट की उम्मेदवारी करो। परन्तु ऐसे झगड़े का काम मिल को पसन्द न आया। इससे उसने उम्मेदवार होने से इनकार कर दिया। तब से उसने एकान्त-वास करने और पढ़ने ही लिखने में अपनी बाक़ी उम्र बिताने का निश्चय किया। वह अविगनान नामक गाँव में जाकर रहने लगा। १८७३ में वहाँ उसकी मृत्यु

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