पृष्ठ:संकलन.djvu/४१

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दिये थे। लड़कपन में इस तरह का संस्कार होने के कारण मिल के धार्मिक विचार अनोखे थे। उनको उसने 'धर्म की उपयोगिता' में बड़ी ही योग्यता से प्रकट किया है। उसकी स्त्री विदुषी थी। तत्त्व-विद्या में वह भो खूब प्रवीण थी। पुस्तक- रचना में भी उसे अच्छा अभ्यास था। 'स्वाधीनता और स्त्रियों की पराधीनता' को मिल ने उसी की सहायता से लिखा है। और भी कई पुस्तकें लिखने में उसने मिल की सहायता की थी। अपने आत्म-चरित में मिल ने उसकी अत्यधिक प्रशंसा की है। 'स्वाधीनता' को उसने अपनी स्त्री ही को समर्पण किया है। उसका समर्पण भी बहुत ही विलक्षण है। उसमें उसने अपनी स्त्री की प्रशंसा की पराकाष्ठा कर दी है। मिल बड़ा उदार पुरुष था। सत्य के खोजने में वह सदैव तत्पर रहता था। जिस बात से अधिक आदमियों का हित हो उसी को वह सब से अधिक सुखदायक समझता था। इस सिद्धान्त को उसने अपने 'उपयोगिता-तत्त्व' में बहुत अच्छी तरह प्रमाणित किया है। नई और पुरानी चाल की ज़रा भी परवा न करके जिसे वह अधिक युक्तियुक्त समझता था, उसी को वह मानता था। वह सुधारक था; परन्तु उच्छृंखल और अविवेकी न था। उसने अनेक विषयों पर ग्रन्थ लिखे। जो लोग बिना समझे- बूझे पुरानी बातों को वेद-वाक्य मानते थे, उनके अनुचित विश्वासों को उसने विचलित कर दिया, उनकी सदस- द्विचार शक्ति को उसने जागृत कर दिया; उनकी विवेचना

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