करने की अनुमति दे रक्खी है। कल्पना कीजिए कि किसी
विषय में कोई आदमी अपनी राय देना चाहता है और उसकी
राय ठीक है। अब यदि उसे बोलने की अनुमति न दी जायगी
तो सब लोग उस सच्ची बात को जानने से वञ्चित रहेंगे। यदि
वह बात या राय सर्वथा सच नहीं है, केवल उसका कुछ
ही अंश सच है, तो भी यदि वह प्रकट न की जायगी --
तो उस सत्यांश से भी लोग लाभ न उठा सकेंगे। अच्छा, अब
मान लीजिये कि कोई पुराना ही मत ठीक है, नया मत ठीक
नहीं है। इस हालत में भी यदि नया मत न प्रकट किया जायगा
तो पुराने की खूबियाँ लोगों की समझ में अच्छी तरह न
आवेंगी। दोनों के गुण-दोषों पर जब अच्छी तरह विचार
होगा, तभी यह बात ध्यान में आवेगी, अन्यथा नहीं। एक बात
और भी है। वह यह कि प्रचलित रूढ़ि या परम्परा से प्राप्त
हुई बातों या रस्मों के विषय में प्रतिपक्षियों के साथ
वाद-विवाद न करने से उनकी सजीवता जाती रहती
है। उनका प्रभाव धीरे-धीरे मन्द होता जाता है। इसका फल
यह होता है कि कुछ दिनों में लोग उनके मतलब को बिलकुल
ही भूल जाते हैं और सिर्फ पुरानी लकीर को पीटा करते हैं।
मिल की मूल पुस्तक की भाषा बहुत क्लिष्ट है। कोई कोई
वाक्य प्रायः एक एक पृष्ठ में समाप्त हुए हैं। विषय भी पुस्तक
का क्लिष्ट है। इससे इस अनुवाद में हम को बहुत कठिनता
का सामना करना पड़ा है। हमको डर है कि हमसे अनुवाद-
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