कुल सफ़ेद और पारदर्शक है। देखने में यह बर्फ़ का एक बड़ा
टुकड़ा सा जान पड़ता है। एक विलायती जौहरी का मत है
कि आज तक जितने अच्छे अच्छे हीरे मिले हैं, उन सब से
यह अधिक स्वच्छ और पानीदार है। इसकी बनावट से
मालूम होता है कि अपनी स्थिति में यह हीरा बेहद बड़ा रहा
होगा। मुमकिन है, इसका वजन मनों रहा हो! इस प्रचण्ड
रत्न-राज के नीचे का हिस्सा भर शेष रह गया है; और सब
कई टुकड़ों में होकर उड़ गया है। नहीं मालूम, ये उड़े हुए
टुकड़े कहाँ गये, या क्या हुए अथवा वे कभी किसी को मिलेंगे
या नहीं।
आश्चर्य की बात है कि हीरे की उत्पत्ति कोयले से होती
है। कोयले के समान काली चीज से हीरे के समान दीप्तिमान
रत्न निकलता है! पृथ्वी के पेट में भरी हुई असीम उष्णता के
योग से हीरे बनते हैं। जब वह उष्णता अतुल वेग के साथ
पृथ्वी की तहों को तपाती और फाड़ती हुई ऊपर आती है,
तब किसी किसी जगह एक विशेष प्रकार की रासायनिक
प्रक्रिया शुरू होती है। जिस जगह इस प्रक्रिया की सहायक
सब सामग्री रहती है, उस जगह हीरे की उत्पत्ति होती है।
दक्षिणी आफ्रीका की खानों से यह साफ जाहिर होता है कि
वहाँ पर किसी समय ज्वालामुखी पर्वतों के मुँह से बहुत ही
भयङ्कर स्फोट हुए हैं। जिन मुँहों से होकर पृथ्वी के पेट से
आग निकली है, वे अब तक बने हुए हैं। उन्हीं के आस-पास,
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