पर है वह भी पूरी पूरी गुलामी। गुलामी के सिवा और कुछ नहीं। कोई कोई प्रति सप्ताह तनख्वाह पाने के परिवर्तन में, अपने को बेच डालती हैं, कोई कोई पति-प्राप्ति के परिवर्तन में। पति को मालिक बनाकर उसके अधीन रहना क्या गुलामी नहीं ? औरों की नौकरी करना क्या गुलामी नहीं ? ये बातें सर्व-साधारण के सामने प्रकाश रूप से नहीं होतीं। हर एक नौजवान लड़की चुपचाप गुलामी स्वीकार कर लेती है। यह बात मैं प्रकाश रूप से करना चाहती हूँ। मैं सब लोगों को सूचना देकर अपने को नीलाम करने जाती हूँ। इस तरह नीलाम करने से मुझे आशा है कि मेरी क़ीमत लोग कुछ अधिक लगावेंगे। अतएव खुल्लम-खुल्ला नीलाम करने में हानि ही क्या है ?
"मेरा परलोकवासी पिता सरकारी नौकर था। मुझे लिखाने-
पढ़ाने और शिक्षा देने में उसने ३०,००० रुपये खर्च किये।
इतनी लागत से मैं जवान होकर नीलाम होने के लायक हुई
हूँ। पर यद्यपि मैं जी-जान होम कर "टाइप राइटिङ्ग" का काम
करती हूँ, तथापि ३० हफ़्ते से अधिक मुझे तनख्वाह नहीं
मिलती। मेरी तैयारी में जो मूल धन लगाया गया है, उस पर
यह ५ फी सदी के हिसाब से भी तो नहीं पड़ता। अब मैं यह
जानने के लिए उत्कण्ठित हो रही हूँ कि गुलामों के मालिक
अमेरिका-निवासी धनवान् लोग जियादह से जियादह कितनी
कीमत देकर गुलाम बनाने के लिए अमेरिका ही की एक तरुण
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