पृष्ठ:संकलन.djvu/६७

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कुमारी को खरीद कर सकते हैं। मैं जानना चाहती हूँ कि इस तरह की गुलाम कुमारिकाओं का बाजार-भाव क्या है। जब कोई आदमी किसी चीज को खरीद करना चाहता है, तब वह उसके गुणों का वर्णन भी सुनना चाहता है। बहुत अच्छा; जब मैं अपना नीलाम करने पर उतारू हूँ, तब अपना वर्णन भी अपने ही मुँह से क्यों न कर दूँ। सुनिए --

"मैं तरुण हूँ, समझदार हूँ, पढ़ी-लिखी हूँ, शिष्ट हूँ, व्यव- हारश हूँ, सच बोलती हूँ, विश्वासपात्र हूँ, न्यायनिष्ठ हूँ, काव्य- रसज्ञ हूँ, तत्वज्ञ हूँ, उदार हूँ -- सबसे बड़ा गुण मुझ में यह है कि मैं स्त्रीत्व के सर्वोच्च गुणों से विभूषित हूँ। मेरे भूरे नेत्र बड़े बड़े हैं। मेरे ओठों से सरसता टपकती है। मेरे दाँत अनार के दाने हैं। मैं अपने को सुन्दरी तो नहीं कह सकती, पर मेरी शकल-सूरत बहुत ही लुभावनी है। मेरा चरित्र खूब उच्च और दृढ़तापूर्ण है। हाव-भाव भी मुझ में कम नहीं है। दिल मेरा छोटा नहीं, बहुत बड़ा है। कभी कभी मैं बहुत ही विनोदशील हो जाती हूँ ! मैं खुश-मिजाज होकर अपनी प्रतिष्ठा का हमेशा खयाल रखती हूँ। पढ़ने-लिखने में मैं खूब दिल लगाती हूँ। मैं धार्म्मिक तो हूँ, परन्तु धर्म्मान्ध नहीं। मैं सीना तो नहीं जानती, पर पहनने के कपड़े बहुत अच्छे काट सकती हूँ; और काटना ही मुशकिल काम है। दुकान में रखे हुए भले-बुरे मांस की मुझे पहचान नहीं; पर खिलाने-पिलाने में मैं बड़ी होशियार हूँ। मिहमानों को खुश करना मैं बहुत अच्छा जानती हूँ।

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