पृष्ठ:संकलन.djvu/७०

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जाने से उन्हें बोलने का अभ्यास नहीं होता। इससे वे बेचारे जन्म भर बहरे तो रहते ही हैं; बहरेपन के कारण गूँगे भी रहते हैं। इस दोष को दूर करने के लिए अमेरिका के विद्वानों ने अजीब तरकीबें निकाली हैं। उन्होंने ऐसे स्कूल खोले हैं जिन में विशेष कर के स्त्रियाँ ही अध्यापिका हैं। वहाँ बच्चों को अध्यापिकाओं की जीभों और होठों की तरफ ध्यान दिलाया जाता है। किसी वर्ण या शब्द का उच्चारण करने में अध्यापि- काओं के होंठ जिस तरह खुलते और बन्द होते हैं और जीभ जिस तरह हिलती-डुलती है, बच्चों को भी वैसा ही करने की शिक्षा दी जाती है। 'क' 'ख' 'ग' आदि वर्णों की जगह पर अँगरेज़ी के 'A' 'B' 'C' आदि वर्ण इसी तरह सिखलाये जाते हैं। जो आवाज़ ठीक ठीक बच्चों के मुँह से नहीं निकलती, उसे निकालने के लिए एक सीधा-सादा यन्त्र भी है। जीभ की ठीक ठीक हरकत न होने ही से अपेक्षित आवाज़ नहीं नि- कलती। पर उस यन्त्र से जीभ को यथास्थान कर देने से वह निकलने लगती है। इसी तरह कुछ दिनों तक वर्णमाला और अङ्क उच्चारण करना सिखलाया जाता है।

यह शिक्षा बड़े बड़े आइनों की सहायता से दी जाती है। बच्चे क्लासों में बँटे रहते हैं। कोई 'क' क्लास में, कोई 'ख' क्लास में, कोई 'ग' क्लास में। एक एक क्लास को अलग अलग शिक्षा दी जाती है। अध्यापिका एक आइने के सामने जाती है और एक बच्चे को अपने साथ लेती है। वहाँ वह 'क' उच्चारण

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