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देखिए, प्रकृति जिन बातों से गूंगों और बहरों को वञ्चित करना चाहती है, उन्हीं को मनुष्य अपनी विद्या, बुद्धि और मिहनत से उन्हें प्राप्त करा देता है।

[सितम्बर १९०७.





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