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गवर्नमेंट के शाही दफ़तरों में काम करने लगते हैं। फिर वे या तो शिक्षा-विभाग के सर्वोच्च अधिकारी या "Chuken" परीक्षा के परीक्षक बनाये जाते हैं। इसके बाद उन्हें कोई ऊँचे दर्जे की सरकारी जगह मिल जाती है।

इस तरह चीन में हजारों वर्षों से परीक्षायें होती चली आ रही हैं। राज-कर्मचारियों के चुनाव की प्रणाली भी पूर्व- वत् ही बनी है। जब तक विदेशियों के क़दम-शरीफ़ चीन में नहीं पहुँचे थे, तब तक सब काम सन्तोषजनक रीति से होता रहा। पर जब से राज्य-लोलुप पश्चिमी जातियों ने चीन को दबाना शुरू किया है, तब से कुछ दूरदर्शी चीनी विद्वानों की आँखें खुल गई हैं। वे समझने लगे हैं कि ज़माने के साथ साथ चले बिना इस संसार में अपना नाम बनाये रखना बहुत मुश- किल है। शिक्षा और परीक्षा की लगी हुई पद्धति को छोड़ कर जब तक हम लोग पश्चिमी रीति-नीति से लौकिक शिक्षा का प्रचार न करेंगे, तब तक उन्नति करना तो दूर रहा, उलटे विदे- शियों की ठोकरें खाते खाते एक दिन चीनी जाति विधर्मियों के पराधीनता-पाश में अवश्य बँध जायगी। यद्यपि चीन के इन दूरदर्शी सुपुत्रों की चेष्टा अभी तक पूर्ण रूप से सफल नहीं हुई, तथापि उसके शुभ परिणाम के चिह्न प्रकट होने लगे हैं। आशा है कि वह एक न एक दिन अवश्य सफल होगी।

[सितम्बर १६०८.
 

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