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अमेरिका के गाँव

जिस तरह भारतवर्ष अत्यन्त दरिद्र है, उसी तरह अमे- रिका अत्यन्त धनवान् है। यह बात दोनों देशों के गाँवों की तुलना करने से अच्छी तरह प्रकट हो जाती है। हमारे देश के गाँव दरिद्रता और मूर्खता के केन्द्र-स्थान हैं। अकेला गँवार शब्द ही इस बात का साक्षी है। गाँवों के घर निरी मिट्टी के झोंपड़े होते हैं। रहने का घर, चौपायों का घर, कूड़ा-घर आदि सब एक ही जगह होते हैं। एक ही तालाब में गाँव भर के लोग नहाते, कपड़े धोते, पशुओं को पानी पिलाते और कभी कभी स्वयं उसका पानी पीते हैं। इसके सिवा वे लोग आधे नंगे, आधे भूखे रह कर अपना जीवन बिताते हैं। उनके लिये "काला अक्षर भैंस बराबर" है। दीन-दुनियाँ की उन्हें कुछ खबर नहीं। सभ्य संसार को ऐशो-आराम की चीज़ें उन्हें स्वप्न में भी नसीब नहीं। मतलब यह कि यदि गाँवों के झोंपड़ों के अधिवासियों को दरिद्रता और अविद्या का मूर्ति- मान अवतार कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं।

परन्तु अमेरिका की दशा यहाँ से ठीक उलटी है। वहाँ

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