पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१२७

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ha ( ७७ ) तब तब जग भूपण रिपुकुल-दूषण, । सबको भूषण पहिरावै ॥ २७ ॥ [तोटक छद ]' कबरी कुसुमालि सिखीन दयी। 2 गंज-कुभनि हारनि शोभमयी ॥ मुकुत्ता शुक सारिक नाक रचे । - कटि केहरि किंकिणि सोभ सचे ॥ २८ ॥ दुलरी कल कोकिल कठ बनी। मृग खजन अ जन भाँति ठनी ।। नृप हसनि नूपुर शोभ भिरी। कल हसनि कठनि कठसिरी ॥ २९॥ मुख-वासनि वासित कीन तबै । तृण गुल्म लता तरु शैल सबै ॥ र जलहू थलहू यहि रीति रमैं । घन जीव जहाँ तहँ संग भ्रमैं ॥ ३०॥ [दो०] सहज सुगधि शरीर की, दिशि-विदिशन अवगाहि । दूती ज्यो आई लिये, केशव शूर्पनखाहि ॥ ३१ ॥ शूर्पणखा-राम-संवाद [ मरहट्टा छद] दादे5 इक दिन रघुनायक सीय सहायक रतिनायक . अनुहारी। शुभ गोदावरि तट विमल पचवट बैठे हुते मुरारी॥