पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४२

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मान की जमनिका' की, कजमुख नूदिबे को
सीताजू को उत्तरीय सब सुख सारु है ॥ ९ ॥
[ स्वागता छद ]
वानरेद्र तब यों हँसि बोल्यो ।
भीति भेद जिय को सब खोल्यो ।
आगि बारि परतच्छ करी जू ।
रामचंद्र हँसि बाह धरी जू ॥ १० ॥
सूर-पुत्र तब जीवन जान्यो।
बालि-जोर बहु भाँति बखान्यो ।
नारि छीनि जेहि भाँति लई जू ।
सो अशेष विनती विनई जू ॥ ११ ॥
सप्तताल-वेधन
एक बार शर एक हनौ जौ।
सात ताल बलवत गनौं तै॥
रामचंद्र हँसि बाण चलायो ।
ताल वेधि फिरि कै कर आयो ॥ १२ ॥
[ तारक छद ]
सुग्रीव---यह अद्भुत कर्म और पै होई ।
सुर सिद्ध प्रसिद्धन मे तुम कोई ॥
निकरी मन से सिगरी दुचिताई।
तुम सौ प्रभु पाय सदा सुखदाई ॥ १३ ॥


(१) जमनिका = परदा, कनात ।