पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१४८

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यहि काल कराल ते शोधि सबै हठिकै बरषा मिस दूरि किये ।
अब धौं बिन प्रानप्रिया रहिहै कहि कौन हितू अवलबि हिये ॥३६॥

शरद-वर्णन

[ दा० ] बीते वर्षा काल यौं, आई शरद सुजाति ।।
 गये अँध्यारी होति ज्यौं, चारु चाँदनी राति ॥ ३७॥
[ मोटनक छद ]
दतावलि कुद समान गनौ । चंद्रानन कुतल भौंर घनौ ।
भौंहैं धनु खजन नैन मनौ । राजीवनि ज्यो पद पानि भनौ ॥३८॥
हारावलि नीरज' हीय रमैं । हैं लीन पयोधर अ बर मैं ॥
पाटीर जोन्हाइहि अग धरे । हसी गति केशव चित्त हरै ॥३९॥
श्रीनारद की दरसै मति सी । लेापै तमतमाभप्रकीरति, सी।"
मानौ पतिदेवन की रति कौ । सतमारग की समुझै गति कौ ॥४॥
[दो०] लक्ष्मण दासी वृद्ध सी, आई शरद सुजाति ।
मनहुँ जगावन कौं हमहि, बीते वर्षा राति ॥४१॥

सुग्रीव पर क्रोध

[ कुडलिया ]
ताते नृप सुग्रीव पै, जैए सत्वर तात ।
कहियो वचन बुझाइ कै,कुशल न चाहै। गात॥
कुशल न चाही गात चहत हो बालिहि देख्यो।
करहुन सीता सोध,काम बस राम न लेख्यो।


(१) नीरज = मोती। (२) पाटीर = चदन ।