पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१६५

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सीता-संदेश
[घनाक्षरी]
भौंरनी ज्यौं भ्रमति रहति बनबीथिकानि,
हंसिनी ज्यौं मृदुल मृनालिका चहति है॥
हरिनी ज्यौं हेरति न केसरी' के काननहिं,
केका सुनि ब्याली ज्यौ विलानहीं चहति है॥
'पीउ' 'पीउ' रटत रहति चित चातकी ज्यौ,
चद चितै चकई ज्यौं चुप ह्वै रहति है।
सुनहु नृपति राम बिरह तिहारे ऐसी,
सूरतिन' सीताजू की मूरति गहति है॥७१॥
[दो०]"श्रीनृसिंह प्रह्लाद की, वेद जो गावत गाथ।
गये मास दिन आसु ही झूँठी ह्वै है नाथ"॥७२॥
[दडक]
राम--साँचो एक नाम हरि लीन्हे सब दुख हरि,
और नाम परिहरि नरहरि ठाये हौ।
बानर नहीं हौ तुम मेरे बान रोप सम,
बलीमुख सूर बली मुख निजु गाये हौ॥
साखामृग नाही, बुद्धि-बलन के साखामृग,
कैधौं वेद साखामृग, केसव को भाये हौ।
साधु हनुमत बलवत यसवत तुम,
गये एक काज को अनेक करि आये हौ॥७३॥


केसरी = सिह केशर। (२)मरनिन = सूरतों, दशाओं।