पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/१९६

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गहे बॉह ऐचे चहूँ ओर ताकों।
मनौ हस लीन्हे मृणाली लता कों॥१२७॥
छुटी कठमाला, लुरै हार टूटे।
खसै फूल फूले, लसै केश छूटे॥
फटी कचुकी, किकिनी चारु छूटी।
पुरी काम की सी मनौ रुद्र लूटी॥१२८॥
सुनी लकरानीन की दीन बानी।
तही छाडि दीन्हो महा मौन मानी॥
उठ्यो सो गदा लै यदा लकवासी।
गये भागि कै सर्व साखा विलासी॥१२९॥
मंदोदरी--[दो०] सीतहि दीन्हो दुख वृथा, साँचो देखौ आजु।
करै जो जैसी त्यौं लहै, कहा रक कह राजु॥१३०॥
रावण--[विजय छ द]
को बपुरा जो मिल्यो है विभीषन, है कुलदूषन, जीवैगो को लौं।
कुंभकरन्न मर्यो मघवारिपु तौ री कहा न डरौं यम सौं लौं।
श्री रघुनाथ के गातनि सुंदरि, जानै न तू कुसली तनु तौ लौं।
साल सबै दिगपालन के कर, रावन के करवाल है जौ लौं॥१३१॥
राम-रावण-युद्ध
[चामर छ द]
रावनै चले चले ते धाम धाम ते सवै।
साजि साजि साज सूर गाजि गाजि कै तबै॥