पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १५२ )

जन सेवक सपति कोष सँभारौ।
मयन दिनि के सिगरे दुख टारौ॥१५१॥

सीता की अग्नि-परीक्षा

राम--जय जाय कही हनुमत हमारौ।
सुख देवहु दीरघ दुःख विदारौ॥
सब भूषन भूषित कै सुभगीता।
हमको तुम वेगि दिखावहु सीता॥१५२॥
हनुमत गये तबहीं जहँ सीता।
तब जाय कही जय की सब गीता॥
पग लागि कह्यो जननी पगु धारौ।
मग चाहत है रघुनाथ तिहारौ॥१५३॥
सिगरे तन भूषन भूषित कीने।
धरि कै कुसुमावलि अग नवीने॥
द्विज देवनि बंदि पढी सुभगीता।
तब पावक अक चली चढ़ि सीता॥१५४॥

[भुजगप्रयात छद]

सवस्त्रा सबै अंग शृंगार सोहैं।
विलोके रमा देव देवी विमोहैं।
पिता-अ क ज्यौं कन्यका शुभ्रगीता।
लसै अग्नि के अक त्यो शुद्ध सीता॥१५५॥