पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२०८

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उत्तर कांड
[चतुष्पदी छद]
हनुमत विलोके भरत ससोके अंग सकल मलधारी।
बकला पहिरे तन, सीस जटा गन, हैं फल मूल अहारी॥
बहु मत्रिनगन मै राज-काज मैं सब सुख सौ हित तोरे।
रघुनाथ-पादुका तन मन प्रभु करि सेवत अ जुलि जोरे॥१॥

भरत प्रति राम संदेश

हनुमान्--
सब सोकनि छॉड़ौ, भूषन मॉडौ, कीजे विविध बधाये।
सुर-काज सँवारे, रावन मारे, रघुनंदन घर आये॥
सुग्रीव सुयोधन, सहित विभीषन, सुनहु भरत शुभ गीता।
जय कीरति ज्या सँग अमल सकल अँग सोहत लछमन सीता॥२॥

[पद्धटिका छद]

सुनि परम भावती भरत बात।
भये सुख-समुद्र मै मगन गात॥
यह सत्य किधौं कछु स्वप्न ईस।
अब कहा कह्यो मोसन कपीस॥३॥
जैसे चकोर लीलै अँगार।
तेहि भूलि जाति सिगरी सँभार॥