पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२२४

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और देव अदेव वानर याचकादिक पाइयो।
एक अगद छोडि कै ज्वइ जासु के मन भाइयो॥९०॥
अंगद--देव हौ नरदेव वानर नैऋर्तादिक धीर हौ।
भरत लक्ष्मण आदि दै रघुवश के सब वीर हौ।
आजु मोसन युद्ध माँडहु एकएक अनेक कै।
बाप को तब हौ तिलोदक दीह देहुँ विवेक कै॥९१॥
राम-[दो०] कोऊ मेरे वश मैं, करिहै तोसों युद्ध।
तब तेरो मन होइगो, अगद मोसो शुद्ध॥९२॥
रामराज्य-वर्णन
[भुजगप्रयात छंद]
अनता सबै सर्वदा शस्ययुक्ता।
समुद्रावधिः सप्त ईती विमुक्ता॥
सदा वृक्ष फूले फले तत्र सोहैं।
जिन्हें अल्पधी कल्प साखी विमोहैं॥९३॥
सबै निम्नगा छीर के पूर पूरी।
भयी कामगो सी सबै धेनु रूरी॥
सबै वाजि स्वर्वाजि ते तेज पूरे।
सबै दति स्वदति ते दर्प रूरे॥९४॥


(१) अनता = पृथ्वी। (२) सप्तईति= अवर्षण, अतिवर्षण, चूहे, टिड्डी, तोते, स्वराष्ट्र की तथा शत्रु-राष्ट्र की सेना, जिनसे खेती को हानि पहुंचती है। (३) निम्नगा = नदी।