पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२३

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( १७ ) परतु इतना सब होने पर भी हम यह नहीं कह सकते कि रामचंद्रिका में प्रवध नहीं है। प्रबध का टूटता सा दिखाई देना दूसरी बात है और टूट ही जाना दूसरी बात । इस प्रकार हम देखते हैं कि रामचद्रिका मे महाकाव्य के प्रायः सभी लक्षण पाए जाते हैं। इसी लिये वह महाकाव्य माना भी जाता है। परंतु बाहरी लक्षण ही सब कुछ नहीं हैं। ये लक्षण महाकाव्य के बाह्यावरण मात्र की सूचना देते हैं, जिसका महत्त्व इसी मे है कि वह अ तरात्मा के आवरण का काम करता है, उसके स्थित रहने के लिये आधार प्रस्तुत करता है। अतरात्मा से अलग उसका अपना कोई मूल्य नहीं है। महाकाव्य को 'महान्' होने के पहले काव्य होना चाहिए। यदि वह काव्य नहीं है तो उसकी महत्ता, उसका विस्तार कौड़ी काम का नहीं हो सकता। ____ हमारे यहाँ काव्य को परखने की क्सौटी रस माना जाता है, वही काव्य की अ तरात्मा है। रस उस आन द को कहते ____ हैं जो किसी भाव के उदय होने से रामचंद्रिका में काव्यत्व लेकर परिपक्कावस्था तक उपयुक्त सांगो- पांग परिस्थितियो के बीच निर्वाह को अनुभूति-पथ में ले आने से होता है। इसमे सदेह नहीं कि कविता भाव-प्रधान होती है परंतु वही भाव कविता को आकर्षण प्रदान कर सकता है जो विशिष्टताओं से मुक्त होकर साधारण मानव-हृदय की अनु- भूति का विषय हो सकता है, उसकी वासनाओं को जगा देता