पृष्ठ:संक्षिप्त रामचंद्रिका.djvu/२४२

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लव-शत्रुघ्न युद्ध
[ धार छ द ]
योधा भगे वीर शत्रुघ्न आये।
कोदंड लीन्हे महा रोष छाये॥
ठाढ़ो तहाँ एक बालै विलोक्यो।
रोक्यौतहीं जोर,नाराच मोक्यो ॥१८९॥
[ सुदरी छंद]
शत्रुघ्न---बालक छाँड़ि दे छाँड़ि तुरगम।
तोसो कहा करौं सगर-सगम॥
ऊपर वीर हिये करुना रस।
वीरहि विप्र हते न कहूँ यश ॥१९०॥
[ तारक छंद ]
लव---कछु बात बडी न कहो मुख थोरे।
लव सो न जुरौ लवणासुर भोरे॥
द्विजदोषन ही बल ताकौ सँहारथो।
मरिही जो रह्यो, सो कहा तुम मारथो ॥१९१॥
[ चामर छंद ]
रामबंधु बान तीनि छोडियो त्रिशूल से।
भाल मे विशाल ताहि लागियो ते फूल से॥
लव---घात कीन राजतात गात तै कि पूजियो।
कौन शत्रु तै हत्यौ जो नाम शत्रहा लियो ॥१९२


( १ ) मोक्यो = (मेाच्या) छाडा।